Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज # जिंदगी की सांझ

रतना जी की आंखें छलछला आई थी पति का अपमान देखकर ।रोटी आंसूओं से मिलकर ज्यादा ही नमकीन लग रही थी रतना जी को ।अरे ऐसा क्या मांग लिया था रमेश जी ने बहू संध्या से।रोटी ही मांगी थी, पनीर की सब्जी के साथ आज रोटी खाने का दिल कर रहा था इस लिए उन्होंने बहू से चावल की जगह रोटी मांग ली थी।
 संध्या रमेश जी की थाली मे ऐसे रोटी फेंक कर गयी जैसे कुत्ते के आगे फैंकते है।" लो खा लो।पहले नही बता सकते थे रोटी खानी है ।मेरे हिस्से की रोटी भी हड़पने के चक्कर मे रहते है । पता नही कब पीछा छूटेगा इन दोनों से पनौती पल्ले पड़ गयी है।"
 रतना जी ने बेटे की ओर उम्मीद से देखा कि वह बहू के ऐसे बदतमीजी भरे व्यवहार को देखकर कुछ कहेगा ।पर निराशा ही हाथ लगी।
 रतना जी और रमेश जी जैसे तैसे अपमान की रोटी के निवाले निगल कर अपने कमरे मे आ गये। रतना की आंखों मे आंसू देखकर रमेश जी बोले,"अरे क्यों रोती हो।हो सकता है बहू को बुरा लगा हो मैंने आज चावल की जगह रोटी जो मांग ली थी।"
 रमेश जी रूंधे गले से रोती पत्नी को ढांढस बंधाने लगें।
 रतना जी पिछली यादों मे खो गई।कैसे उनकी बहन ने उन्हें ये सलाह दी थी "बहन अपनी जमापूंजी से खरीदा मकान बेटे के नाम कभी मत करना तुम्हारी यही सबसे बड़ी ताकत है ।"
 पर रतना जी भी भंवर मे फंस गयी थी बात यूं थी कि कमल और नीरज दो बेटों की मां होना रतना जी को हमेशा गौरवान्वित करता था।पर पता नही क्यूं कमल का स्वार्थी पन देखते हुए भी रतन जी ने हमेशा बड़े बेटे का साथ दिया और उसकी गलती पर हमेशा पर्दा डाला।एक तो शादी के चार साल बाद हुआ दूसरा होने के बाद भी दूसरी संतान चार साल बाद हुई तो कमल हमेशा रतना जी का लाडला ही रहा ।नीरज बचपन से ही मां का बडे भाई की तरफ झुकाव को महसूस करता था।रतना जी भी कमल की तरफ झुकाव की वजह से नीरज से भेदभाव कर जाती थी।
 और बड़ा होने पर भी नीरज ने ऐसा काम किया कि मां बाप से सदा के नाता टूट गया वह विदेश पढ़ने गया तो वही की भारतीय मूल की लड़की से विवाह करके वही बस गया।
 मां बाप ने नीरज को अपनी जिंदगी से ही निकाल दिया था। जिसका फायदा कमल ने रतना जी से मकान हथिया कर किया। वो वैसे ही रतना जी का लाडला था दूसरी नीरज ने विदेश मे ही शादी कर ली तो वह रतना जी की नजरों से उतर गया।
 कमल सारा दिन दोनों को डराता रहता कि विदेशी लड़की है ।कल को नीरज हिस्सा मांगने आ गया तो हर रोज मांस मच्छी बने गा इस घर मे।
 जिससे डरकर रतना जी ने डर के मकान कमल के नाम कर दिया । थोड़े दिन तो सब सही रहा लेकिन थोड़े दिनों बाद जब मकान बिक गया तो दोनों का रहने का कोई ठिकाना नहीं था । इसलिए वे कमल के साथ दिल्ली आकर रहने लगे। थोड़े दिन तो बहू संध्या ने शर्म रखी । लेकिन जब उसके मां बाप जो उसके साथ ही रहते थे उनका घर आना जाना कम हो गया तो वह अपना असली रूप दिखाने लगी।
 वो हर समय रतना जी से उलझने की कोशिश करती।
 रतना जी और रमेश जी अपमान का घूंट पी कर रह जाते।
 एक दिन दोनों मंदिर मे दर्शन करने गये थे ।तभी विदेश से नीरज का फोन आया ।रतना जी तो जैसे भरी ही बैठी थी उसने कमल ओर बहू का सारा दुर्व्यवहार नीरज को बता दिया और ये भी बता दिया कि किस प्रकार उसने मकान अपने नाम कराके बेच डाला।नीरज ने अगले हफ्ते भारत आने को कहकर फोन रख दिया।
 नीरज आया तो होटल मे रूका और मां पिता जी को मंदिर मे ही मिलने पहुंचा।उसे बचपन से ही मां से उपेक्षा ही मिली थी पर विदेश मे रहते हुए वह अपनों की कमी को बहुत शिद्दत से महसूस कर रहा था। ऊपर से मां का ऐसे बिलखना उसे अंदर से द्रवित कर गया।
 उसने सारी बात जानकर ये महसूस किया की मां पिताजी को इज्जत की जिंदगी केवल उसी पुराने घर मे मिलेगी जिससे उनकी जड़ें जुड़ी हुई है।उसने सबसे पहले चुपके से मां बाबूजी की जमापूंजी से बनाया मकान जो कमल ने अपने लालच मे बेच दिया था उसे खरीदा ओर मां पिताजी को कमल के घर लेने पहुंच गया।वह उनके मुंह नही लगना चाहता था लेकिन फिर भी संध्या नीरज से भिड़ ही गयी,
 "कहां ले जा रहे हो नीरज देवर जी ।ये अव्वल दर्जे के निकम्मे नकारा है ।आप का क्या कुछ दिन घुमाओगे फिर यही पटक जाओगे।हमसे पूछिए बूढ़ों के साथ कैसे रहा जाता है।"
 नीरज का मन तो यही कर रहा था कि संध्या भाभी का मुंह नोच ले‌।पर वह चुप रहा।और मां बाबूजी को लेकर रेलवे स्टेशन आ गया।पहले तो रतना जी ने सोचा शायद बेटा घुमाने ले जा रहा है पर जब अपने पुराने शहर का टिकट लिया तो रतना जी सोचने लगी शायद कही कुनबे मे कोई कार्यक्रम होगा।पर जब वो अपने शहर उतरे तो एक अपनेपन की हवा उन्हें अंदर तक छू गयी।नीरज ने टैक्सी कर ली और जैसे ही उनके पुराने मकान के आगे जाकर टैक्सी रुकी तो रतना जी और रमेश जी सकपकाए कि ये हमे यहां क्यों ले आया ।जब वे नीचे उतरे तो नीरज ने मकान की चाबी रमेश जी के हाथों मे थमाकर कहा,"चलिए बाबू जी अपना घर खोलिए।"
 रमेश जी और रतना जी की आंखों मे आंसू बह चले थे।आज जिसको गैर समझकर उसकी जरा सी गलती पर उन्होंने उसे जिंदगी से बेदखल कर दिया था ।आज उसी ने उनके सिर पर इज्जत की छत की थी।रतना जी उस मकान की दीवारों को चूम रही थी और रो रही थी ।नीरज को गले लगाकर बोली,"तू ही मेरा श्रवण कुमार है।"
 नीरज बेटे और बहू को भी ले आया था।आज घर मे सात्विक भोजन बना था ठाकुर जी को भोग लगाकर खाना मेज पर लगाया गया और खाना इतना स्वादिष्ट और इज्जत से भरा था कि दोनों की आंखें छलछला आई।

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15 Comments

Behtarin rachana

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Sadhna mishra

07-Sep-2022 01:42 PM

Shandar 👌

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Mithi . S

07-Sep-2022 12:26 PM

Bahut achhi rachana

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